ध्यान
ध्यान
माँ की ऊँगली पकड़ी और पहले अक्षर "माँ" का ध्यान किया,
शिक्षा की पहली सीढ़ी पर चलने के अनुभव का रसपान किया।
विद्यालय में जब कदम रखा तब गुरुओं का सम्मान किया,
गुरुजन ने मिल जीवन के रस्ते को सीधा सरल प्रमाण किया।
सही गलत के बीच खड़े अवरोधों का खण्डन श्रीमान किया,
ज्ञान ज्योति का पुंज जगा भीतर मन को रौशनदान
किया।
अज्ञान भंवर भव सागर में डूबे जाना सबका मुमकिन था,
पर शिक्षक ने ले हाथ में ज्ञान फिर गंगा का श्रीगुणगान किया।
पहले सबने रोका फिर एक दिन नारी को भी शिक्षा का मान दिया,
कन्धे से कन्धा मिला चले जब नए आयामों का सुंदर भान किया,
नमन करे ये राही हर शिक्षक को जिसने अपना जीवन शिक्षा के नाम किया,
और विद्या का रंग बच्चों के मन भरने का अक्षुण्ण काम महान किया।