धुआं
धुआं
महकता कत्थई आंचल
लिपटता है जिस्म से
न उतारे जा सकने वाले पैरहन की मानिंद।
रेशमी छुअन
सींचती है सांसों को
लुभाती है रूह को
डोलता है मन
इबादत में डूबे दरवेश की मानिंद।
जलता है
अंदर बाहर पल पल
अघोरी के हाथों में थमी धूनी की मानिंद।
धुआं धुआं
ज़िंदगी फिसली जाती है हाथों से
दिन - ब - दिन मुट्ठी में बंद रेत की मानिंद।