धुआँ-धुआँ
धुआँ-धुआँ
साँसों में ये कैसी घुटन
आँखों में है कैसी चुभन
क्या हुआ मेरे शहर को
जिधर देखो बस धुआं-धुआं
कितनी धवल चांदनी रातें
चाँद से करते मन की बातें
कितना भोला था बचपन
आज जवानी है धुआं-धुआं
मानव मानव में है दंगल
उगे हैं कंक्रीट के जंगल
प्यासी धरती सूखे दरख़्त
उठता है बस धुआं-धुआं
जंगल काटे हो गए सयाने
खोल दिए कल कारखाने
जहर ने जकड़ा है हवा को
बचा है तो बस धुआं-धुआं
हर ज़िन्दगी यहाँ है बीमार
खड़ी है प्रदुषण की दीवार
भौतिक सुख की चाहत में
जिंदगी बन गई धुआं-धुआं
कब सुबह कब हुई शाम
सुकून को लगा है विराम
हिमशिखर दर्शन देता नहीं
उसके आँगन में धुआं-धुआं।