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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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दहशत

दहशत

1 min
203



एक अजीब सी दहशत

हर मन में छाई है,

घरों में कैद हैं फिर भी

सूकून कहाँ भाई है।

बंद दरवाजों पर भी

रह रहकर ध्यान जाता है,

जैसे मौत की दस्तक

रह रहकर आई है।

इतनी उम्र हुई मेरी

कभी डरा तो नहीं था मैं,

आज तो खौफ ऐसा है

कि जैसे जान पर बन आई है।

बता दे तू मुझको इतना जरा

क्या तू दहशत का बड़ा भाई है?

ऐ कोरोना बहुत हो चुका

बंद कर आँख मिचौली हमसे,

हमनें चुपचाप तुझे मान लिया 

दहशत तेरा सहोदर भाई है।

बंद कर अब तो डराना मुझको

मेरी तेरी तो न कोई लड़ाई है,

तेरे नाम की दहशत समाई इतनी

लगता है तू मेरी जान का सौदाई है।

अब मान भी जाओ हाथ जोड़ता हूँ मैं

अब तो वापस चला जा मेरे यार

मेरे घर में भी माँ बाप बहन भाई हैं,

यकीन मान ले ऐ मेरे प्यारे कोरोना 

मेरे घर में पहले से मेरा घर जमाई है।



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