धरती की पुकार
धरती की पुकार
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धरती कहे पुकार के
सारे इस जहान से
बहुत बुरा हो गया मेरा हाल
अब मत बढ़ाओ मेरा भार।
पहले से ही है इतना भार
हो गई मैं बहुत बेहाल।
आबादी ऐसे ही बढ़ाओगे
सुख-चैन कहां तुम पाओगे।
हे मानव अब तो चेतो
बढ़ती जनसंख्या का
कुछ तो हल सोचो।
कहीं ऐसा न हो जाए
तुम्हारे कर्मों की सजा मुझे मिल जाए
और असमय ही मेरे प्राण निकल जाए।