धर्म
धर्म
धर्म जीवन का प्रस्थान बिंदु है और मोक्ष गंतव्य बिन्दु कहलाता ।
सतत् सानिध्य जो सद्गुरु का करता, जीवन लक्ष्य प्राप्त कर जाता।।
धर्म बोध सद्गुरु से मिलता, बिंन गुरू भव निधि कोई न तरता।
आत्मबोध का भरा खजाना, विरलों को ही मुश्किल से मिलता।।
तृप्त न होता धन दौलत से, कंचन-कामिनी की इच्छा मानव जो करता।
समय का पर बड़ी वेग से उड़ता, पलक झपकते औंधे मुंह वह गिरता।।
विशाल तृष्णा रत दरिद्री कहलाता, प्रभु इच्छा लाभ संतुष्ट धनी कहलाता।
परम धन,परमानंद उसी को मिलता, जो संत शरण&n
bsp;में शीश झुकाता।।
सबसे ऊंची प्रेम सगाई, सब धर्मों ने इसकी महिमा है गाई।
सच्चा मज़हब प्रेम कहलाता, मीरा ने प्रभु कृष्ण से है पाई।।
धारण,पोषण धर्म कहलाता, धर्म तत्व हृदय गुहा में रमता।
जहां सत्य नहीं वहां धर्म अछूता, छल कपट में जीवन है कटता।।
धर्म बिन नीति विधवा समाना, नीति रहत धर्म विधुर समाना।
प्रतिकूल आचरण अधर्म कहलाता, दया भाव और प्रेम धर्म समाना।।
सकारात्मकता प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता, वर्तमान सबका सुखमय बनाता।
"नीरज" धर्म रूप प्रकाश तू पाले, अंधकारमय जीवन को दूर भगाता।।