धोख़े का कोई हुनर...!
धोख़े का कोई हुनर...!
नज़र नीची किये उसका गुजरना पास से मेरे,
मेरे सरजमीं पर उसका अधिकार हो जाना,
समझ कुछ भी नहीं आता,
यक़ीन ख़ुद पे नहीं होता,
अचानक से क्यों दिल की धड़कनों का रफ़्तार बढ़ जाना....
मायूस सी आँखें कुछ कहना चाहती हैं,
इन्हे कहीं नहीं सुकून बस तुम्हारे दिल में रहना चाहती हैं....
ग़र यक़ीन ना हो मुझपे तो एक बार कह देना,
धोख़े का कोई हुनर हमको नहीं आता।