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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Abstract

4.5  

Vijay Kumar उपनाम "साखी"

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धन-दौलत का भूखा नहीं

धन-दौलत का भूखा नहीं

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धन-दौलत का नहीं भूखा हूं

इस ज़माने से बड़ा रूठा हूं

लोग कुछ कहे परवाह नहीं,

मैं आदमी बड़ा ही अजूबा हूं


स्नेह मे जो कुछ मिलता है,

खा लेता वो रूखा-सूखा हूं

धन-दौलत का नहीं भूखा हूं

पत्थर पे फूल खिलाता हूं


मेहनत का गाड़ता खूंटा हूं

जो करता मन से करता हूं

कार्य नहीं करता अधूरा हूं

झूठी दुनिया मे भले रहता हूं


मैं नहीं कोई शख्स झूठा हूं

धन-दौलत का नहीं भूखा हूं

अपत्व भावना का भूखा हूं

पर आजकल की दुनिया में,

अपनों से ही बहुत लूटा हूं


जितना जाता उजालों मैं,

उतना हुआ काला-कलूटा हूं

फिर भी हारूंगा नहीं जग से,

मैं बड़ा ही शख्स अनूठा हूं


मिलनेवाले कितना सतायेंगे,

मैं भी कोहिनूर का अंगूठा हूं

धन-दौलत का नहीं भूखा हूं

प्रेम की दौलत का भूखा हूं 


जहां मिले,वहीं खुश रहता हूं,

मानवता को मानता खुदा हूं

इसके लिये जीता-मरता हूं,

सच का पीता रहता हुक्का हूं


धन-दौलत का नहीं भूखा हूं

मैं जुगनू बड़ा ही चंद्ररूपा हूं।


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