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Sudhir Srivastava

Abstract

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देव दीपावली

देव दीपावली

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देव दीपावली  ************ कार्तिक मास की पूर्णिमा को  देव दीपावली मनाया जाता है, इसके पीछे त्रिपुरासुर राक्षस के अत्याचारों से  देवताओं को मुक्त कराने के उद्देश्य से  भोलेनाथ शिव द्वारा उसके वध को माना जाता है। देवताओं ने काशी में दीप जलाकर  विजय का उत्सव दीप जलाकर मनाया था, तभी से इसे देव दीपावली कहा जाने लगा था। मन के नकारात्मक भावों को दूर करने के लिए  गंगा स्नान की परंपरा और घाटों पर दीप जलाकर  उत्सव रुपी देव दीपावली मनाने की परंपरा है यह उत्सव अद्भुत अनुभव कराता है। इस दिन का आध्यात्मिक महत्व भी है  प्रकाश के अंधकार पर और ज्ञान के अज्ञान पर विजय को प्रतीक रूप में मनाया जाता है।  देव स्थान पर दीपक जलाया जाता है,  जिसे हमारे द्वारा दीपदान भी कहा जाता है।  इस दिन एक, इक्कीस, इक्यावन अथवा एक सौ आठ दीप जलाये जाते हैं, जिसे हम-आप सभी शुभ मानते हैं, इससे अधिक दीपक भी हम  स्वेच्छा से जलाने के स्वतंत्रत हैं। इस दिन देवता स्वर्ग से धरती पर आते हैं और इन्हीं दीपों के प्रकाश में अपनी  पावन उपस्थिति का भाव जगाते हैं। मान्यता है कि इस रात भगवान विष्णु तो  क्षीरसागर में विश्राम भी करते हैं। देव दीपावली के दिन शाम को पूजा-पाठ के बाद  पीली वस्तुओं का दान करना शुभ माना जाता है, किसी निर्धन, गरीब, असहाय को खाने-पीने की चीजों  या धन का दान करने का सुखद परिणाम मिलता है। सुधीर श्रीवास्तव  


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