देख तूने फिर आग लगा दी
देख तूने फिर आग लगा दी
देख तूने फिर आग लगा दी,
मेरे अरमानों पर
मैं मचलती रही सारी रात,
अपना सर रख किताबों पर।
तू गर आ जाता तो मैं सँवर जाती,
ना आकर तूने मुझे बेताब किया
मेरे सोये अरमानों पर,
अपनी हस्ती का तिलक छाप दिया।
मेरा रोम - रोम बेकाबू था,
तेरे जाने के बाद ओ दिलबर,
मैं समेट रही थी तेरी यादों को,
अपनी बाहों को फैला के हर पल।
जब बुझ ना सकी वो अगन दीवानी,
और दिखने लगा मेरा बहता पानी,
उस पानी से ही मैने तब मन बहलाया,
खूब पानी से अपने तन को नहलाया।
अब डरती हूँ मैं तेरे ख्यालों से,
जो आग लगा देते हैं नए सवालों से,
तू अब जब भी आना कभी,
इस आग में मेरे संग जल जाना यहीं।।