डमरू का संताप
डमरू का संताप


सुन डमरु की विकल धवनि
महाकाल जब विहल हुए
डमरू का संताप सुन
महाकाल भी विचलित हो बोले -
"डमरु क्यों संताप करता है ?"
क्यों तिहूं लोकों में विकल धवनि भरता है ?
डमरु बोला-" है महाकाल है भोलेनाथ "
नहीं देखा जाता मुझसे धरती का यह रूप
जो वसुंधरा, जो विकेशी थी,
उत्पीड़न का शिकार हुई।
प्रदूषण व विभिन्न रोगों से
आज जार-जार हुई
करता नहीं मनुष्य इसकी रखवाली
भोगता विभिन्न रूपों में इसे
क्या होगा इसका परिणाम
यही सोच कर हृदय मेरा संताप से भर जाता है
हे महादेव, है महाकाल कुछ तो कृपा करो
मेरी धरती मां को यूं ना कुरूप होने दो।