चुप ही रहते
चुप ही रहते
1 min
180
चुप ही रहते
कौन सा आकाश टूट पड़ता
तुम्हें शायद
इतना भी पता नहीं है हमारा कि
हम शब्दों से
तुम्हारे मंतव्य ही नहीं
तुम्हारे गंतव्य का
हासिल ढूंढ लेते हैं।
चुप ही रहते
व्यवहार का भरम
जीवन की तरह
जीवित तो रहता।
फिर भी चलो कोई बात नहीं
फिर नजरंदाज करते हैं
तुम्हारे शब्दों को।
बकबकाने की बीमारी है
तुमको
और हमीं चुप हो जाते हैं।