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डॉ. Pankajwasinee

Tragedy

3  

डॉ. Pankajwasinee

Tragedy

चुभती बेरुखी तेरी

चुभती बेरुखी तेरी

2 mins
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बाहरी भीड़ में गहरे खोया और 

आकर्षक शोर से भरा हुआ है ये जीवन !

जो चकाचौंध तो पैदा करता है!!

पर जो हमारी आत्मा को

तनिक भी स्पर्श नहीं करते!!!


चारों ओर गहमागहमी :

अपनों के संग ही नहीं

बेगानों के साथ भी...

पूरे ताम - झाम के साथ बने रिश्ते ...!

मन में कोई फुरहरी नहीं जगाते!!


कामयाबी के घोड़े पर सवार...

आसमानी बुलंदियों को छूता...

समृद्धि और प्रसिद्धि के शिखर पर विराजमान!! 

तेरे अंतस् का कोना क्यों था इतना वीरान?

कि तुम न हिचके :मौत को गले लगाते!! 


अभिनव के बेताज बादशाह!

तुम थे संजीदगी के मिसाल!! 

लबों पे थिरकती मोहिनी मुस्कान जो थी:

उसके पीछे ऐसे कौन - से दर्द थे छिपाए! 

जो थे तुम्हें जीना नहीं सिखाते!! 


आम जन के ही बीच से आए

नित संघर्ष कर प्रसिद्धि पाए! 

जीवन का हर सुख साज सजाया!! 

सफलता थी तुझे चहुँओर से घेरे! 

फिर कौन से दर्द रहे तुम्हें जीवन से भगाते!! 


क्या परदे पर अभिनय करते करते... 

तुम निजी जीवन में भी अभिनय करने लगे!?! 

दुनिया को मुहब्बत से चूमती नजरें तेरी! 

और तेरे होठों पर सजी रहनेवाली मुस्कान!! 

बस सदा ही रहे लोगों को भरमाते!!! 


आडंबरों से भरी इस दोहरी दुनिया में:

कोई नहीं जान सका भीतर की वीरानगी को... 

भरे पूरे दीखते इंसान के खोखलेपन को... 

अधरों पर सजी तेरी प्लास्टिक स्माइल! 

बस लोगों को रह गई भ्रम में डालते!! 


इंसान के भीतर में पसरे सन्नाटे को... 

उसके अंतस् में फैले अंधकार को... 

हृदय की गहराई में पैठे अवसाद को... 

कहाँ भेद पाता है कोई जो न हो मन का साथी! 

आज तुमपर, कल हमपर लोग दिखेंगे तोहमत लगाते!! 





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