चलो मूंद लें पलकें दोनो
चलो मूंद लें पलकें दोनो
चलो मूंद लें पलकें दोनो ,
कुछ देर चलें .....
सपनों की नगरी में दोनो |
बंद पलकों से जो महसूस होता ,
वो खुली आँखों में ,
भला कैसे होता ?
जब अधरों से अधर मिलते ,
धीरे - धीरे फिर ये दिल खिलते ,
कितना रंगीन तब ये समां होता |
हाथों में हाथ लिए ,
मोहपाश में झूल लिए ,
सिर्फ एक एहसास होता |
बदन फिर लिपटें ऐसे ,
लतायें आपस में जैसे ,
एक मदभरा अट्टहास होता |
नशा मद का मदहोश करे ,
होने दे होता है जो बिन जाम भरे ,
एक अनदेखा अंदाज होता |
चलो मूंद लें पलकें दोनो ,
कुछ देर चलें .....
सपनों की नगरी में दोनो ||