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Praveen Gola

Romance

3  

Praveen Gola

Romance

चलो मूंद लें पलकें दोनो

चलो मूंद लें पलकें दोनो

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चलो मूंद लें पलकें दोनो ,

कुछ देर चलें .....

सपनों की नगरी में दोनो |


बंद पलकों से जो महसूस होता ,

वो खुली आँखों में ,

भला कैसे होता ?


जब अधरों से अधर मिलते ,

धीरे - धीरे फिर ये दिल खिलते ,

कितना रंगीन तब ये समां होता |


हाथों में हाथ लिए ,

मोहपाश में झूल लिए ,

सिर्फ एक एहसास होता |


बदन फिर लिपटें ऐसे ,

लतायें आपस में जैसे ,

एक मदभरा अट्टहास होता |


नशा मद का मदहोश करे ,

होने दे होता है जो बिन जाम भरे ,

एक अनदेखा अंदाज होता |


चलो मूंद लें पलकें दोनो ,

कुछ देर चलें .....

सपनों की नगरी में दोनो ||



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