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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Abstract

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Abstract

चलो !अच्छा हुआ !

चलो !अच्छा हुआ !

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चलो ! अच्छा हुआ !

हम जुदा हो गए 

यादें ठहर गईं

अपनी तलाश मे आईना बदलता रह गया 

तेरी आँखों में दिखा अक्स वहीं ठहर गया

क्या पता कल का

नई दूरी हो , नई मजबूरी हो


चलो ! अच्छा हुआ !

आशा बदली परिभाषा बदली

रिश्ते तिरसठ से छत्तीस बन गए

दुआ से दुविधा में देवता पड गए

किसी ने अपने लिए मौत माँगी 

किसी ने उसके लिए जिंदगी माँगी 


चलो ! अच्छा हुआ !

किसी ने कहा नहीं,

किसी ने सुना नहीं

अफसोस होता,काश !

रुक जाता, झुक जाता

समझ लेता, समझा लेता


चलो ! अच्छा हुआ !!

ऐसा-वैसा,जैसा-तैसा

हुआ नहीं कुछ 

गयी जीत छोटी सी जिद्द

चित भी मेरी पट भी मेरी।


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