छवि तुमहारी
छवि तुमहारी
आती है तन्हाई मे तुम्हारी याद,
तब छवि तुम्हारी सामने होती है।
जो रुबरु हो न शके,
वह बात उसी से करता हूँ।
छवि तुम्हारी दिखाकर,
समझा लेता हु दिल को,
जब वो मानता नहीं।
तकदीर में नहीं है तू,
दिल मे बिठाकर पाया है तुम्हें।
देख लेता हूँ छवि तूमहारी,
जब भी होता है मृदुल मन बेकरार।