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Vinay Singh

Abstract

4  

Vinay Singh

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छुटता बचपन

छुटता बचपन

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आज के बच्चे, कहाँ गिनते हैं तारे,

तितलियों के झुंड में, फिरते हैं मारे,

मां कहाँ अब लोरियां है, गुनगुनाती,

कौन परियों की कहानी, अब सुनाती,


अब यहाँ सावन में, कजरी कौन गाता,

मेघ मल्हार गाके, बादल को बुलाता,

कौन अब बैलों को, गुरियों से सजाता,

हल की मुठिया, पकड के भी गीत गाता,


कौन भूखे पेट, अब है भजन गाता,

भींगकर भी, झोपडी को घर बताता,

सच की खातिर कौन है, कसमें उठाता,

गांव की वृद्धा को, दादी मां बुलाता,


अब कहाँ शादी में, पंचमेल सजता,

पतझड भरे बागों में, कोई खेल रचता,

अब कबड्डी की कहाँ, हुंकार गूंजती,

लाठियों की खेल में, तकरार गूंजती,


आज वृद्धों से कहाँ, बचपन है डरता,

अब परायी वेदना में, कौन मरता,

दूध की नदियों, कहाँ कोई बहाता,

कौन तपस्या करके, ब्रह्मा को बुलाता,


अब कहाँ गलियों में, बाईस्कोप दीखता,

श्राप में किसके, कहाँ अब कोप दीखता,

अब सारंगी की कहाँ है, गान गूंजती,

कोयलों संग, बच्चो की भी तान गूंजती,


अब कोई इज्जत कहाँ, पूरे गांव की है,

खंडाऊं कहाँ दासी, किसी के पांव की है,

वृक्ष की छाया, किसे अब छांव देते,

भीख हंसकर कौन, अब किस गांव देते,


कौन भाई के दुखों से, आज रोता,

कौन पुवालों में, लगाकर खाट सोता,

अब कहाँ आल्हा का, कोई गीत गाता,

कौन वीरों की कथा को, अब सुनाता,


अब कहाँ कातिल, लवंडा नाचता है,

खाकी पहन पाती, कहाँ कोई बांचता है,

कौन चिडियों को, यहाँ पानी पिलाता,

घोसलों से गिर गये, बच्चे उठाता,


लघु यंत्र सबके, ग्यान का भंडार है,

अब हाथ में सबके यहीं, तलवार है,

लब्ज अब राणा, शिवा पर मौन है,

गूगल से सब पूछते, बाप उनका कौन है।                              


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