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छोटे शहरों के बड़े ख़्वाब

छोटे शहरों के बड़े ख़्वाब

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छोटे शहरों से जो आते हैं बड़े ख़्वाब लिए...

इन जवानों के इरादों पे शक न करना तुम...


बहुत मासूम होते हैं ये परिंदे अक्सर...

सिवाए दुआओं के कुछ नहीं इनके बस्ते में..

और कई देखे अनदेखे मरासिम हैं रस्ते में..

और कुछ जज़्बे हैं इन भीड़ भरे शहरों में..

अपनी जगह बनाने के..

खुद को आज़माने के..,


ये नहीं दिखते चमकते हुए चेहरों की तरह..

अपने ही मुल्क़ में रहते हैं ये ग़ैरों की तरह...

तो क्या हुआ नहीं समझ इन्हे अंग्रेजी की...

तो क्या हुआ जो अभी आदत नहीं है तेज़ी की..

तुम इनसे बात करो..

थोड़े सवालात करो...


तो तुम जानोगे हक़ीक़त इनकी..

तो तुम जानोगे अज़ीयत इनकी...


किसी ने क़र्ज़ लिया हैं ज़मीन गिरवी रख के...

तो किसी की माँ के ज़ेवरों ने दी है क़ुरबानी ..

इनके माँ बाप ने देखें इनमें ख़्वाब जवां...

बुढ़ापा खुद पे लाके, देके अपनी जवानी...

तो क्या हुआ जो जुबां कच्ची है...

इनकी नियत तो फिर भी सच्ची है...


इनमें तुम ज़ात न देखो न मज़हब को देखो...

जो इनमें है छुपा असल उसे अब तो देखो..

इनको उलझाओ न सियासत के कारखानों में...

इनको बेचो न अमीरों की तुम दुकानों में...

बस इन्हे आज़ाद रहने दो रविश में इनकी...

राहें निकलेंगी हालात की तपिश से इनकी...


तो अब की बार जो मिले कोई नौजवान..

छोटे शहर से,आँखों में बड़े ख़्वाब लिए..

तो उसके ख़्वाब का मज़ाक न उड़ाना तुम..

या मदद करना उसकी बढ़के ज़िम्मेदारी से..

या उसी रस्ते से खामोश गुज़र जाना तुम..

किसी सब्र हरगिज़ न आज़माना तुम.


कुछ करो या न करो,

न उसका हौसला दबाना तुम...


ये जो छोटे शहरों से आये हैं बड़े ख़्वाब लिए..

जगमगाएंगे एक दिन ये ज़रूर..

अभी हैं थोड़े से मायूस ज़रा..

मुस्कुराएंगे एक दिन ये ज़रूर...



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