Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Anil Jaswal

Abstract

3  

Anil Jaswal

Abstract

चेहरा खुश, मन में प्रश्न

चेहरा खुश, मन में प्रश्न

2 mins
120


सुबह तड़के उठे,

मां ने नहलाया,

फिर नाश्ता करवाया,

बस अड्डे आए,

बस पकड़़ने केे लिए,

मैं हैरान था,

लोगों को इधर उधर  जाते देखा,

सामान उठाए,

कोई एक बस सेे उतरता,सरी बस पर चढ़त

कुछ लोग,

उनको छोड़ने आए,

उनको सीट पर बिठाते,

फिर स्वयंं खिड़की की  तरफ जाकर,

उनसे बातें करते,

और उन्हें फिर से   ‌वापस आने के लिए कहते।


मेरी मां भी,

एक बस के निकट आई,

उसका दरवाजा खोला,

मुझे चढ़ाया,

फिर स्वयं भी चढ़ी,

एक अच्छी सीट देखने लगे,

मैं बहुत प्रफुल्लित था,

मां ने एक सीट चुनी,

मैंने बोला,

देखो खिड़की खुलती मांं,

उन्होंने देखा,

लेकिन जाम पाया,

कंडक्टर को बोला,

उसने किसी ओर सीट  पर बैैैैठने का,

इशारा किया,

मां ने खिड़की खोली,

मुझे उस तरफ बिठाया,

टिकट कटाने लगी,

और मुझे हिदायत देे डाली,

बाजू खिड़की से,

बाहर नहीं निकालना।


आखिर बस चली,

मेरा पहला सवाल,

मां ये हमें कहां  लेे जायेगी,

मां ने बोला,

अनिल जब पहुंचेंगेे पता चल जाएगा,

फिर गाड़ी  घुमावदार,

मोड़ों से होती हुुई,

आगे बढ़ने‌ लगी,

मैं जैसे ही नीचे,

खिड़की सेे देखता,

मैं डर जाता,

और मां सेे कहता,

मां उतर चलो,

नहीं तो हम गिर जाएंगे,

लेकिन मांं चुुुप  रहने की हिदायत देती,

और बोलती कुछ नहीं होता,

गायत्री मंत्र का  जाप करो,

डर दूर हो जाएगा,

एक ओर परेेेशानी मां,

जैसे जैैैैसे गाड़ी मुुुुुड़ती,

मैं सीट से,

नीचे गिरने लगता,

मां बोली थोड़़ी आंखें तरेड़ कर,

सामने वाला डंंडा पकड़ो,

फिर आराम से बैठो,

लेकिन मांं के  बोलने के ढंग से लगा,

शायद और सवालों की,

गुंजाइश नहीं।

आखिर बस एक जगह रूकी,

तीन चार फेरी वाले,

अंदर घुुुसे,

और मेरेे मुुंह में पानी,

मैंने फिर से मां   ‌से,

खोए वाली   वर्फ की,

मांग कर डाली,

मां ने बोला,

घर में नाश्ता नहीं किया था,

मेरी आंंखों में,

सहानुभूति के लिए   आंसू,

आखिर मांं का दिल पिघला,

और पांच रूपए की,

खोए की वर्फ मिल गई,

और मैं खाने लगा,

लेकिन बेचारी मां  के लिए,

एक ओर काम बढ़़ गया,

मैं जितना खाता,

उससे अधिक कपड़ों  पर गिराता,

परंतु  मां की मैनेजमेंट देेेखो,

झट से नयेेकपड़े निकाले,

और बस में  बैठेे बैठे बदल डालेे।


गाड़ी पहुुंची अपने गंतव्य,

मां ने मुुझे नीचेे उतारा,

और फिर  वो खुुद उतरी।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract