चाँदनी की चादर, ओस की बूँदें
चाँदनी की चादर, ओस की बूँदें


ढ़ल गया है सारा मंजर, शाम धुंधली हो गयी,
चाँदनी की चादर ओढ़े हर पहाड़ी सो गयी।
वादियो मे पेड़ है अब अपनी ही परछाईयां,
उठ रहा है कोहरा जैसे चाँदनी का हो धुँआ।
चांद पिघला तो चट्टानें भी मुलायम हो गयी,
मन की साँसें जो महकी और मरहम हो गयी।
नरम है जितनी हवा उतनी फिज़ा खामोश है,
टहनियो पर ओस पीके हर कली बेहोश है।
होंठ पर करवट लिये अब उगते हैं रास्ते,
दूर कोई गा रहा जाने किसके वास्ते।
ये सुकून मे खोई वादियां नूर की जागीर है,
दूधिया परदे के पीछे सुरमयी तस्वीर है।
धुल गई रूह लेकिन दिल के ये एहसास हैं,
ये सुकुन चंद लम्हो को ही मेरे पास है।
फसलों क़े गर्द मे ये सादगी खो जायेगी,
शहर जाकर जिंदगी फिर शहर की हो जायेगी,
शहर जाकर जिंदगी फिर शहर की हो जायेगी,