चांद से बाते
चांद से बाते


दिन भर की तपिश से परेशान,
तेरे पास लौटा हूँ, ये चाँद,
शायद तुझसे कुछ ठंडक मिले,
भीड़ में किसी से कहना
कुछ भी हैं नामुमकिन,
न जाने कौन क्या मतलब ले ले।
इस अंधेरे में जब कोई और ना
हो आस पास, तेरी रोशनी में,
बंद लबों, से दर्द बह निकले।