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Dineshkumar Singh

Abstract

3  

Dineshkumar Singh

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चांद से बाते

चांद से बाते

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दिन भर की तपिश से परेशान,

तेरे पास लौटा हूँ, ये चाँद,


शायद तुझसे कुछ ठंडक मिले,

भीड़ में किसी से कहना

कुछ भी हैं नामुमकिन,

न जाने कौन क्या मतलब ले ले।


इस अंधेरे में जब कोई और ना

हो आस पास, तेरी रोशनी में,

बंद लबों, से दर्द बह निकले।


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