चाँद के कंगन
चाँद के कंगन
रात ने पहन लिए हैं..
चाँद के कंगन।
तारों की ओढ़नी और..
जुगनुओं की पायल।
उतरी धरा पे
उजाले की दुल्हन।
महावर लगे पाँव।
सपनों की दहलीज पर छाप ।
शगुन ले रही रातरानी।
आ चुपके से महक उठी।
सन्नाटा बजा रहा शहनाई।
धीमे धीमे।
चुप बिल्कुल चुप
बोलने दो सन्नाटे को।
खोलने दो घूंघट
रात शरमाई और सिमट गयी।
अम्बर के आगोश में।
सूरज बिखेर किरणे स्वर्णिम खुश है।
चूम रही हैं महावर लगे पदचिन्ह उषा भी।।