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Utkarsh Srivastava

Abstract

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Utkarsh Srivastava

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चाहत और आरज़ू

चाहत और आरज़ू

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शिद्दत में कोशिश जरूरी नहीं

चाहत में थोडी भी दूरी नहीं

मंजिल ठहरती नहीं है कभी 

मकसद से जिनकी मंजूरी नहीं


हालात पल में सँवरते नहीं

एहसास जब तक उभरते नहीं

अंगार लंका जला जाते है।

जीते है वो जो मुकरते नहीं


अंजाम जो भी हो ख्वाईश मिले

सबकी वफा के भी हो सिलसिले

साहस ही सपने दिलाते नहीं

जज्बातो से भी तो हर दिल खिले।


मुश्किल समस्या तभी है बनी

जब तक बेहोशी ही छायी घनी

सक्रियता जीवन में जब भी घुली

इतिहास देते रहे सनसनी


अंधेरे को घर बनाने तो दो

सूरज को थोडा जलाने तो दो

तपती है धरती तपन से कभी

रूह मे ऊजाले बिछाने तो दो।


तलवार लाशे गिराती रही।

खूनी समा को ही पाती रही

जिंदादिली जब तपस्या बनी 

सुलह की बारी भी आती रही।


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