चाहकर भी
चाहकर भी
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कई बार हम जानते हैं की
कही न कही हम किसी के साथ
कुछ गलत कर रहे हैं
और उसके परिणाम भी
अच्छे नही होंगे,
लेकिन ये सोचते हुए
इतने दूर निकल जाते हैं,
की फिर चाहकर भी
उस गलती को सुधार नही पातें।
फिर इक दिन न चाहते हुए भी
हम उनकी नज़र में वो बन जाते हैं,
जो असल जिंदगी में हम है ही नहीं।