बूँद
बूँद
एक बूँद पानी की,
छलकी जो नभ से,
उषा किरण संग,
ओस बन गयी...!
वही बूँद पानी की,
बह चली नेत्रों से,
लिए शोक विषाद संग,
अश्रु बन गयी....!
वही बूँद जो टपकी,
स्वाति नक्षत्र में,
सीपी में बस कर,
श्वेत मोती बन गयी...!
और बादलों से पृथक बूँद,
आ गिरी है मिट्टी में,
सन कर हो गयी धूमिल
मात्र एक बूँद ही रह गयी...!
व्यर्थ देती अब दोष बूँद
विधि को, भाग्य को
जीवन पथ बेशक निर्धारित है,
पर नियति उद्यम आधारित है...!