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बुढ़ा कहकर कोई हसीना

बुढ़ा कहकर कोई हसीना

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गीत

बूढ़ा कह कर कोई हसीना

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उसकी रग रग में अंगारे भरे हुए हैं पहचाने ।

बूढ़ा कहकर कोई हसीना कभी न दे उसको ताने।।

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यही दीवाने का कहना है बाल यूं काले करता है।

उसे देखना है कोई क्या उसपे आकर मारता है ।।

क्रीम लगा कर चेहरे पर वो उसकी चमक बढ़ाता है।

आस यही तो रहती दिल में क्या कोई अपनाता है।। 

सनक बुढ़ापे की बस ये है लोग जवान उसे माने ।

बूढ़ा कहकर कोई हसीना कभी न दे उसको ताने।।

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कमजोरी से क्या होता है अनुभव का भंडार है वो।

पढ़ा लिखा वो कम है लेकिन बुद्धि का आगार है वो।।

उसने दुनिया को देखी है संगत से जो पाया है ।

समझदार होने का तमगा उसके हक में आया है।।

कहकर मॉडल उसे पुराना लग जाए न समझाने ।

बूढ़ा कह कर कोई हसीना कभी न दे उसको ताने।।

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"अनंत"दिल बूढ़ा कब होता दिल तो सदा जवान रहे।

प्यार दिलों में सदियों से ही रहता आया ध्यान रहे ।।

दिल का सौदा दिल वालों ने किया सदा ही याद करो।

कहाँ उम्र का बंधन इसमें प्यार करो दिल शाद करो ।।

कमतर समझो नहीं कभी दिल सब उसके ही दीवाने।

बूढ़ा कहकर कोई हसीना कभी न दे उसको ताने।।

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अख्तर अली शाह "अनंत "नीमच



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