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Mr. Akabar Pinjari

Others

5.0  

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बुढ़ापे की सनक

बुढ़ापे की सनक

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उम्र पचपन की, दिल बचपन का पाया है हमने, 

बेशक, बेवकूफों से भी, धोखा खाया है हमने।


वह किरदार ही कुछ, अलग होते थे सयाने,

जिन किरदारों में शोर है मचाया हमने। 


यह बुढ़ापे की सनक ही, कुछ ऐसी होती है,

ख्वाहिशें हजारों हैं, पर उम्र नेक होती है।


चिंगारी से बनता है बवंडर, आग का विशाल,

और वजूदे बवंडर में चिंगारियां, अनेक होती हैं। 


फिज़ा बख्श दूंगा, अगर ज़माना बदल जाए,

करूंगा कुछ नया गर, वक्त दूबारा मिल जाए।


ज़मीन से लेकर सितारों तक, वो अंदाज नया होगा,

बुढ़ापे की सनक का, आगाज़ ही कुछ नया होगा। 


ऐतराज़ ना हो, अगर ऐतबार पर मेरे,

तो देख इस मासूम के, हजारों रंगीन चेहरे।


देखकर ये मंजर, पर्दानशी भी, पर्दे बदल लेंगे,

कांच के समंदर फिर, आईनों में ढल लेंगे।


नज़ाकत भी होगी, इबादत भी होंगी,तमाशा भी होगा,

बुज़ुर्गियत की दास्तां का बदला नक्काशा भी होगा,


समा जाग उठेगा कदम डोल लेंगे,

जो हमेशा से चुप थे, वो चेहरे भी बोल लेंगे। 



आवाज़-ए-जुनून फिर से आंखों में भर ले,

अब तक नहीं किया है, कुछ ऐसा भी कर ले।


शराफ़त का दस्तूर, बदलेगा इंसान अब ये,

बुढ़ापे की सनक का, मशहूर सनकी है अब ये।


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