बस तुझमे खोना
बस तुझमे खोना
हा, अच्छा था वो छिप छिप कर रोना,
तेरा संग न होना, पर तुझमे ही खोना,
वो भी क्या इबादत थी,
तुझमे ही खोने की आदत थी,
कहने को तुम न थे,
पर मेरे रोम रोम में मुस्काते थे,
आज भी मुस्काते हो,
तन मन मे बसते हो और
बतलाते हो, मैं हूँ न,
अच्छा लगता हैं इस नीर का बहना,
बस तुझमें ही खोना,
बस तुझमें ही खोना।