बस इतनी सी गुज़ारिश है
बस इतनी सी गुज़ारिश है
हे ! ईश्वर मेरी तुझसे बस इतनी सी गुज़ारिश है,
इंसानियत रहे सबके दिलों में यही ख्वाहिश है,
ऊंँच-नीच, धर्म, जाति का कोई यहांँ भेद ना हो,
जिसकी होती हर घड़ी हर पल यहाँ नुमाइश है।
प्रेमभाव से मिल रहें सब, बस तू इतना वर दे,
नफ़रत दिखे न आंँखों में कहीं प्रेम ऐसा भर दे,
किसी की तकलीफ़ देख दौड़ा आए हर इंसान,
इंसानियत का कुछ ऐसा ही रंग दिलों में भर दे।
मानवता समझे सब इंसानियत का न हो पतन,
राह दिखा कोई ऐसी जहांँ झूठ का न हो चलन,
निडर होकर चले सब यहांँ सच्चाई की डगर पे,
अमीरी गरीबी का फर्क ना हो ऐसा हो जीवन।
रावण ना हो मन के अंदर नारी का हो सम्मान,
अन्याय ना हो किसी के साथ और ना अपमान,
नेकी की राह हो झूठ से दूरी बने ऐसी हो सोच,
इंसानियत से बड़ा धर्म नहीं समझ सके इंसान।
हालातों से मजबूर कोई बुराई की राह ना चले,
पेट की भूख की खातिर किसी के आंँसू न गिरे,
सर ढक जाए, पैर भी ना दिखे तू ऐसी चादर दे,
ज़्यादा की चाहत नहीं बस सुख से जीवन बीते।