बरसात की मार
बरसात की मार
जेठ की ज्वाला तपती धरती
प्यासी धरती बेहाल इंसान।।
कुछ हो राहत आशा आसमान
हल्की फुहार भी बहारों की
बहार सुकून के पल जीवन संचार।।
आया मानसून अरमंनो की झूम
गांव किसान के मन मे जागी आश
ईश्वर का करते धन्यवाद।।
फुहार से झमा झम बरसात
क्षुद्र नदी भर गई उतराई औकात
पे आई पागल हुई नदी टूटते विश्वाश।।
जल ही जीवन जीवन के लिये
बना जंजाल धरती पर जहां तहां
मिटने लगी हरियाली की खुशहाली
संकट में पड़े प्राण।।
पागल हुई नदी का जल प्रवाह
बह गई झोपड़ी उजडा आशियाना
सवाल जाए तो जाए कहाँ खोजते ठिकाना।।
किसी तरह मिला जीने का बहाना
ऊंचे बंधे पर बस गया ठौर ठिकाना
मुश्किल हुआ रोटी पकाना।।
नदियां झील झरने तालाब
जीवन की रेखा जीवन ही
लगता धोखा पागल हुई नदी
जैसे प्रीतम का प्यार कभी
जिंदगी की सच्चाई फरेब फसाना।।
सुबह से होती शाम बरसात
की आफत कहर भागते इधर
उधर जाने कैसे गुजरती जिंदगी पल प्रहर।।
बरखा बाहारों की दिल की
गली के मोहब्बत के अरमान
बरखा रानी दिलवर का दिल
में रहने का राज।।
बारिस का मौसम आरजू
इंतजार हुश्न इश्क की दस्तक दीदार ।।
वारिस से पागल हुई नदी का
कहर टुटते रिश्ते छूटते प्यार के
घरौंदों याद पुकार।।