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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा बाबा

Tragedy

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा बाबा

Tragedy

बर्बाद ए दस्तूर

बर्बाद ए दस्तूर

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जिनपर था गरुर हमको वो बर्बाद ए दस्तूर हो, गये.

दुनिया थी जिनके कदमों में वो दूर हो गये,

जिंदगी में जो रिश्तों का कत्ल कर गये,

वो जिंदगी में हमसफर बनकर दूर गये।

थी कभी जिनी उम्मीदों की छांव में आराम, 

वो पेड़ पतझड़ आते ही हो गये नाकाम।

पतझड़ का असर तो होता है,

हर पात हमसफर नहीं होता है।

दर्द की आगोश में बैठा हूं,

आंसुओं का जाम पीता हूं।

फर्क नहीं कोई उनपर होता,

टूटा दिल अपना लिये बैठा हूं।

जो प्यार में जिंदगी को मजाक बना के सोये हैं,

वो अक्सर अपना हमसफर खोकर रोये हैं।

जिंदगी में दिल से खेलो मगर रिश्तों से नहीं,

जिस्म से खेलो मगर प्यार के फरिश्तों से नहीं।

दिल को खिलौना जानकर तोड़ा है,

मगर आदमी हूं नहीं दिल खिलौना है।

काबिल न थे वो हमसफर जिंदगी के लिये,

चलती राह छोड़ गये वो भटकने के लिये।

उनसे मिलने की चाह नहीं, 

दिल में जिनके हमराह नहीं।

लिख रहा हूं आज फिर उनकी याद में गजल,

जानता हूं मेरे मरने के बाद गजल होगी पटल।

वो हुश्न वाली प्यार में मतवाली थी, 

वो अपने मतलब का यार देखती थी।

एहसास की बात होती,

अगर वो सच्चा प्यार करती।

जिंदगी अल्फाज़ न होती,

अगर वो दिल से प्यार करती।


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