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Shakuntla Agarwal

Abstract Classics

4.7  

Shakuntla Agarwal

Abstract Classics

बोल लेखनी कुछ तो बोल

बोल लेखनी कुछ तो बोल

2 mins
276


बोल लेखनी कुछ तो बोल,

अपने मन की गांठे खोल,

सदियों से जो दर्द पल रहा,

उसकी सारी परतें खोल,

बोल लेखिनी कुछ तो बोल,

दुनिया में जो कोहराम मचा हैं,

उसकी सारी परतें खोल,

बोल लेखिनी कुछ तो बोल,


त्राहि - त्राहि मची हुई है,

बेरोज़गारी मुँह फाड़ रही है,

भूख - प्यास से व्याकुल हैं सब,

सरकार ने जो ख़्वाब दिखाये,

उनकी सारी परतें खोल,

बोल लेखनी कुछ तो बोल,


हवस के दरिंदे घूम रहें हैं,

इज़्ज़त के ठेकेदार जो बने - फ़िरते हैं,

वो ही इज़्ज़त लूट रहें हैं,

तूने जब आवाज़ उठाई,

उनकी करनी आगे आई,

उनको बीच चौराहें पे रौंद,

बोल लेखिनी कुछ तो बोल,


जिसकी जग में सत्ता आई,

उसने अपनी बीन बजवाई,

कशीदे अपनी शान में लिखवाये,

जो सच्चाई लिखना चाहें,

उसके कलम संग हाथ कटवाये,

खोल उनकी सबकी पोल,

बोल लेखिनी कुछ तो बोल,


सोने की चिड़िया था भारत,

किसने यहाँ पर लूट मचाई,

आपस में जंग छिड़वाई,

मच गई चारों तरफ तबाही,

बन गये यहाँ सभी सौदाई,

किसने यहाँ पर लाशें बिछवाई,

कैसे मच गई होड़म - होड़,

बोल लेखिनी कुछ तो बोल,

अपने मन की गांठे खोल,


जिनको हम पूज रहें हैं,

वही हमको लूट रहें हैं,

भीख माँगने वोट की आये,

फिर हमको आँखें दिखलाये,

पैसा हमारा तिजोरी उनकी,

भूख उनकी बढ़ती जाये,

लाशों के भी मोल लगाये,

उनकी सारी सच्चाई खोल,

बोल लेखिनी कुछ तो बोल,


कितनों के घर बर्बाद हुए हैं,

कितनों के चिराग बुझ गये हैं,

कितने ही बच्चें अनाथ हुए हैं,

किसकी मिली - भगत से महामारी आई,

कौन करेगा लाशों की भरपाई,

उनकी काली कमाई का चिट्ठा खोल,

बोल लेखिनी कुछ तो बोल,

"शकुन" अपने मन की गांठे खोल।


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