बन गया ख़ुदा गर मैं
बन गया ख़ुदा गर मैं


किसी दिन बन गया ख़ुदा ग़र मैं,
मासूमियत बचपन की कुछ और पल छलकाऊँगा,
धड़कते दो दिलों के अंदर,
साँसें सिर्फ एक बनाऊँगा,
बना अगर परवरदिगार मैं जिस दिन,
माँओं की उम्र बढ़ाऊँगा,
सजदे में उठते सच्चे हाथों की,
दुआ में असर बढ़ाऊँगा,
हो मुकम्मल हर मासूम सी ख्वाहिश जिसमें,
इबादत वही सुनाऊँगा!
हर एक अजीज शख्स को,
आईने सा साफ बनाऊंगा,
हँसे भी साथ, रोये भी साथ में,
कुछ ऐसी फितरत सजाऊँगा!