बिकाऊ नहीं
बिकाऊ नहीं
पूछने लगे है आजकल सब हमसे,
आजकल तो छपने लगे हो तुम।
अखबारों में ! ! किताबों में!!
फेसबुक पर बहुत छाएं रहते हो,
रोज नए सम्मान -पत्र पाते हो।
आखिर कितना कमाने लगे हो तुम?
खुद को तुम निचोड़कर,
आराम को भूलकर!!
अनवरत लगे रहते हो तुम,
ना भूख ना प्यास जल्दी ही-
खूब बैलेंस इकट्ठा करोगे तुम।
हमने कहा तुम क्या जानो?
हमारी रचना का मूल्य!
बूंद -बूंद भर कर सागर जैसे,
रचना को पिरोया है हमने।
तिजोरी भर ने की लालसा नहीं,
हमें तो चाहिए बस मुट्ठी भर प्रशंसा!!
हाँ यही तो है मेरी रचना की कीमत बस यही-
कोई पढ़े तो बस उसमें समा जाए !!
जी जाएं उसमें!!
ले पाएं प्रेरणा या फिर दे जाएं,
उसके अधरों पर मुस्कान !!!!
हां !!बस इतना ही ---
क्योंकि मेरी रचना बिकाऊ नहीं!!
हाँ मेरी रचना बिकाऊ नहीं!!