भूख की आग से...
भूख की आग से...
वो खून से लथपथ अखबार लिखूँ
या वो नन्हे पैरों में पड़े छालों का सार लिखूँ
वो सूखी रोटियों का प्यार लिखूँ
उनकी लाचारी लिखूँ बेबसी लिखूँ
तू ही बता मैं कौनसा इतवार लिखूँ
न पैसों की कोई लालसा थी
न तो मोह था कुछ पाने का
निकल पड़े थे कड़ी धूप में
उन्हें तो सिर्फ़ अपने घर तक जाना था
वो नन्ही जान की रोने की
आवाज कानों में अब तक गूंज रही
सरकार सहाय,
संस्थाएँ सहाय, गर सब सहाय हैं
तो फिर भी गरीबी कैसे जूझ रही ?
दो वक़्त का खाना यदि पेट भर
वाक़ई में मिल जाता था ?
वो गरीब किसानी करने सो सो मील
क्यों पैदल जाता था ?