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Surendra kumar singh

Inspirational

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Surendra kumar singh

Inspirational

भटक न जाना राह से यारों

भटक न जाना राह से यारों

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वो जिनकी आँखों से आग लगता

अब उनकी आँखों में रह रहा है

भटक न जाना राह से यारों

वो उनकी आँखों को पढ़ रहा है।


ये जो धुएँ सी है आग फैली

इसे बुझाने की बात सोचो

ये जो जल रहा चमन है अपना

इसे बचाने की बात सोचो

वो दूर से आग जो दिखा था

बर्फ के जैसा पिघल रहा है

भटक न जाना,


खता की इस उलझी सी गली में

मिलन की चाहत भी कम नही है

कलह के इस बढ़ते शोरगुल में

अमन की चाहत ही कम नही है

वो दूर से जो दिखा था कतरा

अब एक समुन्दर सा लग रहा है

भटक न जाना,


लहर की मौजें ख़ौफ का मौसम

चलो मनुजता का घर बना लें

डरे डरे हैं हजारों चेहरे

चलो खुशी के दीये जला लें

वो खत है जिसका नाम तुम्हारे

तुम्हें उसी से मिला रहा है

भटक न जाना राह से यारों

वो उनकी आँखों को पढ़ रहा है।



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