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Sangeeta Tiwari

Inspirational

4  

Sangeeta Tiwari

Inspirational

भिकाजी कामा कि ऐतिहासिक गाथा

भिकाजी कामा कि ऐतिहासिक गाथा

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मातृभूमि करती है नमन, वीर सशक्त उस नारी को।।

दौलत शोहरत को देकर आहुति, भारत मां की बनी पुजारी जो।।

ले चलूं दिव्य नगरी मैं तुमको, वीरांगना करती थी जहां बसेरा।।

लिया अवतार मुंबई की नगरिया, धन्य हुआ भारतवर्ष यह मेरा।।


रचित स्वतंत्रता इतिहास में, नामांकित अन्य स्वतंत्रता सेनानी।।

बनकर इतिहास का अमर सितारा, परचम लहरा गई स्वाभिमानी।।

 सुनाती आज मैं तुम्हें व्याख्या, वर्षों पुरानी एक बात है।।

भारतीय प्रथम विदेश में लहराया, भिकाजी कामा नाम सुविख्यात है।।


हम हिंदूसतानी, व हिंदूस्थान हमारा, समस्त भारतवासियों समक्ष किया आवाहन।

पुकार वंदेमातरम ध्वज गाड़ दिया, हुआ ह्रदय मां भारती का प्रसन्न।।

कहलाया जर्मनी एकमात्र वह देश, मकसद को जहां अंजाम दिया।।

देकर ब्रिटिश शासन को चुनौती, तिरंगा वतन के नाम किया।।


एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन जिसने, खड़ी रोंगटे फिरंगी के किऐ।।

 कमर कसी खड़ी विरांगना, राष्ट्रीय ध्वज को बुलंद किए।

 विभिन्न धर्मों की सजी माला, संस्कृति द्वारा हुई सजावट।।

 हरा पीला व रंग लाल प्रेम का , वंदे मातरम लिख भाव हुए प्रकट।।


भिकाजी की ऐतिहासिक धरोहर, महफूज अपने भारतवर्ष में।।

दीया दिव्य तिरंगे का प्रदर्शन, अन्य सेनानियों के परामर्श में।।

बनी योजना ऐसी क्रांतिकारी, फिरंगी लगे थरथर कांपने,

बनी प्रथम राष्ट्रीय ध्वज निर्माता, आई समक्ष डोरी वह थामने।।


भारतीय स्वाधीनता को मान सर्वश्रेष्ठ, व्यतीत किया था जीवनकाल।।

 प्रबलता व सफलताओं ने उसकी, फिरंगी दिए उलझन में डाल।।

क्रांतिकारी विचारों की धनी वह, लेख द्वारा प्रकट करती भाव ।।

साम्राज्यवाद होने लगा दफन, पड़ा क्रांति का दिव्य प्रभाव ।।


 भारतीय क्रांति की माता कहलाई, दृढ़ निश्चय कहलाया मूल मंत्र।।

 ऐसी समाजसेविका को पाकर, गौरवान्वित हुआ था लोकतंत्र।।

 बड़े जो कदम परदेश की ओर , लगा भारत वर्ष हेतु प्रतिबंध ।।

 बेडीयां तोड़ भारतवर्ष वह लौटी, ठहरा अटूट मां भारती से संबंध।।


प्रदेशों में बनकर वह निवासी, नारा वंदे मातरम का लगा रही थी।।

बैठा अन्य देश पक्ष में, भव्य आंदोलन चला रही थी।।

क्रांतिकारी पत्र किए प्रकाशित , चर्चित नाम वंदे मातरम व मदन तलवार।।

 सजाई शब्द अत्यंत बलशाली, ब्रिटिश शासन पर किए जो प्रहार।।


 रचाई विवाह वह रुस्तम जी संग, ब्रिटिश शासक के कट्टर जो मुरीद।।

 एक और वीरांगना भीकाजी अपनी, लगाई वतन की माटी से प्रीत।।

 प्लेग नामक छाई जो महामारी, हुई खड़ी बनकर वह ढाल।।

 डाल प्रेम पूर्वक सेवा की दृष्टि , होले होले कुतर दिया जाल।।


अंतिम स्वर था वंदे मातरम , प्रस्थान जो स्वर्ग की ओर किया।।

कहलाई दिव्य ऐतिहासिक महिला, बना तिरंगा कफन जिसने धारण किया।।


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