भगवा...
भगवा...
भगवा तिलक है माथे पर
सनातनी हिंदू मेरा नाम है
मन में भगवा तन में भगवा
मुंह पर जय श्री राम है।
श्री राम कृष्ण के वंशज हम
महावीर,बुद्ध के अनुयाई हैं
जहां घोर अत्याचार बढ़े
वहां तलवारें भी लहराई हैं।।
भगवा रंग जब छाएगा
धरती आकाश एक हो जायेगा
त्याग, बलिदान और लहू से अपने
देश ना झुकने पाएगा।
सभ्यता संस्कृति की देखो
भगवा ही पहचान है
सुदूर सागर से पार हिमालय तक
भगवा हमारी शान है।।
भगवा के पराक्रम के आगे
अखंड ब्रह्मांड शीश झुकाता है
रोज सबेरे सूरज भी
जब भगवा ओढ के आता है।
भगवा बहता लहू में मेरे
भगवा मेरी जान है
भगवा के खातिर ये जान क्या
मेरा सम्पूर्ण अस्तित्व कुर्बान है।।
शत्रु शोर से भगवे का
वंदन अब रुक नही पाएगा
जब तक प्राण है इस सीने में
भगवा कोई झुका न पाएगा।
कलम की धार तेज करूं मैं
स्याही लहू की अपनी बना दूंगा
हर हिंदू को भगवामय न कर दूं
तब तक चैन नही मैं लूंगा।।
जय श्री राम का उद्घोष जब
चारों दिशाओं में गूंजेगा
बच्चे, बूढ़े और नौजवान फिर
हाथों में भगवा लेकर झूमेगा।।