बेवफ़ा कोई नहीं
बेवफ़ा कोई नहीं


इश्क़ में दूरी है उनकी क्या मज़बूरी
इस जिरह की गर्त भी हमने पाटी है
उन कांटो को भी दरकिनार किया
बस दिलखोल मोहब्बत बाँटी है।
हुए बेइंतेहा रुस्वा हर कदम पर
ये इश्क़ की चाट बड़ी खाटी है
चखकर चटकारे जितने ले लो
अंत एक छोर कुआँ...दूजे घाटी है।
क्यों विरह दर्द की जकड में प्रेम,
ये प्रीत की कैसी अजब परिपाटी है;
विश्वास की डोर से बंधन चलते जब,
फिर क्यों उस राह बिछी बस काँटी हैं।