बेटी
बेटी
मैं बाबुल की सोन चिरैया
एक दिन तो उड़ जाना है
छोड़के बाबुल का घर अंगना
पीया के घर को जाना है
रीत सदा से यही चली आई
इसको मुझे भी निभाना है
माँ की मै आँखों का तारा
बड़ा मुश्किल है मुझे भुलाना
दिल पर पत्थर रखकर के
बिदाई की रसम है निभाना
भाई की हूँ मैं लाडली बहना
वो कैसे मेरे बिन रह पायेगा
बचपन की खट्टी मीठी यादें
इन सब को कैसे भुला पायेगा
बहुत कठिन है माना मैंने
नई जगह तालमेल बिठाना
कैसे भी करके अब तो मुझको
नये रंग-ढंग में है ढल जाना
नया परिवेश नई जगह पर
अब मुझे भी नया बन जाना है
दोहरी जिम्मेदारी अब मुझपर
साथ साथ दोनों को निभाना है
ससुराल मैं भी बेटी बनकर
सबको मुझे अब दिखलाना है
नई राह और नई डगर पर
चलते मुझको जाना है
दोनों घरों की लाज का अब
जिम्मा भी मुझे उठाना है
अपनी सूझ बूझ से मुझको
आयाम नया अब पाना है।