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Garima Pant

Others

4.5  

Garima Pant

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बेटी नहीं पराया धन

बेटी नहीं पराया धन

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पावन दुआएँ है बेटी,

माँ की आस है बेटी,

पापा की दुलारी है बेटी,


पापा आये जो थके हारे, 

धूप की किरण की तरह , 

भागती दौड़ती आती है बेटी, 

तुरंत पानी लाकर,

गरमा गरम चाय बनाकर,

और अपनी प्यारी मुस्कान से

तुरंत थकान उतार देती है बेटी,

भोली सी पहचान वो घर की, 

चिड़िया सी चहचाहती है, 

उसके बिना घर है सूना,

घर की तो शान है बेटी,

हर रंग में रंग जाने वाली 

हर रंग में रंग देने वाली,

सबके दिलों की जान है बेटी,

फिर बेटे क्यों समझे जाते अव्वल, 

और क्यों बेटी समझी जाती अबला, 

क्यों हो रहा ये वैमनस्य है, 

बेटी तो घर का भविष्य है,

समझो ना हो बेटी तो, 

होगी संतान कहां से, 

ताव दे रहे जो मूछों पर, 

बेटों का गुणगान करते न थकते, 

जाकर कोई उनसे पूछे।

 

अपनी बेटी बेटी है, 

पर बहू नहीं बेटी है, 

वह तो है परदेश से आई, 

ऐसा कहती सासु माई, 

बेटी का सम्मान है पूरा,

बहू का सम्मान अधूरा, 

क्यों उसका मान न होता,

बेटी और बहू में क्या है अंतर,

यक्ष प्रश्न रहा यह निरंतर। 


परिवर्तन की बयार चली है, 

बेटी का सम्मान बढ़ा है, 

थोड़ा हृदय और बदलो, 

बहू को भी बेटी समझो, 

बेटे जैसा स्वस्थ बनाओ बेटी को, 

बेटी को जनना है भविष्य को, 

जो बेटी ना स्वस्थ हुई तो, 

कैसे होगा स्वस्थ भविष्य, 

बेटी ही तो है जननी, 

जिससे आगे दुनिया है चलनी। 

बात अगर तुम यह समझ गए,

तो समझो इतिहास बदल गए, 

फ़िर आएगा ऐसा स्वर्णिम युग, 

खुशियों का नया सूर्य जाएगा उग। 


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