बेहिसाब गम आ मिले।
बेहिसाब गम आ मिले।
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ढूंढने निकले थे खुशी।
बे- हिसाब गम आ मिले हैं।।1।।
गंदा हुआ ज़मीर मेरा।
खुद का इश्राक खो दिए हैं।।2।।
यूं जन्नत मिलेगी कैसे।
गुनाह जो इतने कर गए है।।3।।
तमन्ना थी जिसकी हमें।
वो किसी और के हो गए है।।4।।
ढूंढा था हमने आब को।
तिश्नगी को वो बुझा गए है।।5।।
यूं भूले खुदा को अपने।
काफिरों से हम हो गए है।।6।।
हर जगह बदल गईं।
सारे ही निशां मिट गए है।।7।।
अपना ही शहर हमको।
अब अजनबियों सा लगे है।।8।।