बचपन
बचपन




कैरियर की फ़िक्र ना थी,
मंजिल का पता ना था,
बेधड़क खेलते कूदते,
अच्छे बुरे का पता ना था,
इस घर जाते उस घर जाते,
छुआ-अछूत का पता ना था,
इस समय लगता हम बड़े क्यों नहीं हो रहे,
क्योंकि उस समय बचपन में मज़ा कहाँ था,
साल बीते बड़े हुए,
कंधों में जिम्मेदारियां आयी,
और इस कदर बड़े होंगे ये पता ना था।