बचपन पीछे छूट गया।
बचपन पीछे छूट गया।
आज भी आते,
वो दिन याद,
जब हर रोज शाम को,
होता था मिलन,
दोस्तों के साथ,
फिर करते थे मटरगशती,
शहर की सड़कों पर,
खूब मारते थे गप्पें,
करते थे बहस,
कई बार नौबत,
ये आ जाती,
हाथा पाई पे बात आ जाती।
लेकिन वो सब,
पीछे छूट गया,
अब न होता,
दोस्तों से मिलना,
न वो सड़कों पे तफरी,
और न बहस।
अब मोबाइल आ गया,
अगर मिलता है वक्त,
तो चले जाते,
सोशल मीडिया पर,
बस वहीं,
कर लेते दो दो हाथ,
दोस्तों से,
और फिर देख लेते टेलीविज़न।
सचमुच वो वक्त,
बहुत अच्छा था,
एक दूसरे से,
मुलाकात होती थी,
आंखों आंखों से भी,
बात होती थी,
एक दूसरे को,
महसूस करते थे,
और दिलों में,
निवास करते थे।