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Sudershan kumar sharma

Others

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Sudershan kumar sharma

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बचपन की यादें

बचपन की यादें

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याद आती है जब मुझे बीते लम्हों की परछाई, 

थक जाती हैं रो रो कर यह आंखें न होती है बचपन की भरपाई। 

उम्र छोटी थी पर सपने बड़े बड़े देखा करते थे, 

चलती फिरती दुनिया प्यारी थी पर हम खिलौनों पे मरते थे। 

याद आता है जब बचपन का खजाना, 

किताब, कलम, स्याही, थक जाती हैं

रो रो कर आंखें न होती है बचपन की भरपाई। 

रात जब ढलने को आती थी, सैर मैं करता था जन्नत की जब मां लोरी सुनाती थी, 

किसी राजा से कम न था, मुझे कोई गम न था, डरा सके कोई इतना किसी में दम न था

पर अब तो जीवन में है अन्धेरी छाई, थक जाती हैं रो रो कर आंखें न होती है बचपन की भरपाई। 

थक हार कर जब बोर हो जाता था, चन्द लम्हों तक सपनों में खो जाता था,

सर रख कर मां की गोद में सो जाता था, 

प्यार भरे हाथों से जब मां सिर को सहलाती थी, 

सैर करता था जन्नत की जब मां लोरी सुनाती थी। 

नही़ रहा वो बचपन सुदर्शन नहीं रही वो सुनवाई,

याद आती है जब बीते लम्हों की परछाई,

थक जाती हैं रो रो कर यह आंखें न होती है बचपन की भरपाई। 

याद आता है भाई बहन से झगड़ना, शैतानियां कर के मां के दामन को पकड़ना, 

याद आती हैं वो बातें जो मां ने थी समझाई, 

थक जाती हैं रो रो कर यह आंखें न होती बचपन की भरपाई। 

आज तन्हाई में जब बचपन याद आया, 

ऐसा लगा जैसे खुशी से सुदर्शन फिर गुनगुनाया

पर जब याद आया सच्चाई का आईना तो फिर गम की अंधेरों छा़ई, 

थक गई रो रो कर यह आंखें न हुई बचपन की भरपाई। 

आंसु बनकर गिरती हैं यादें, कहती हैं पल भर फिर से दिख जाए, 

सोच सोच कर थक गया सुदर्शन बचपन की याद सताए। 


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