बचपन की लोरी सुनना चाहूं माँ
बचपन की लोरी सुनना चाहूं माँ
तेरे ही अंचल से बंधा है मेरा बचपन माँ
तुझ से ही तो जुड़ी है मेरी हर धड़कन माँ
तेरी रूह से जुड़ा मेरा वजूद मैं तेरी परछाई माँ
यह जीवन एक छल है बस तू ही सच्चाई माँ
थक जाती हूँ जब जीवन की जिम्मेदारियों से
तो बचपन की यादों से दिल बहलाती हूँ माँ
सब कुछ है मेरे पास पर तेरी कमी रहती है
तेरी गोद में सर रखकर सोना चाहती हूँ माँ
तेरे नेह भरे कर का स्पर्श पाकर
फिर वही बचपन की लोरी सुनना चाहूं माँ
तेरी गोद में सिमट जाऊं एक बार फिर
मैं तुझ संग चैन की नींद सोना चाहूं माँ
तेरी निस्पृह ममता की बारिश में
फिर एक बार भिगाना चाहूं माँ
लिपटकर तेरे आंचल में तुझमें सिमट जाऊं माँ
फिर से तेरी उंगली पकड़कर मैं चलना चाहूं माँ