बावरा मन मेरा
बावरा मन मेरा


बावरा मन मेरा तेरी ही राह तकता है
ज़र्रा-ज़र्रा-ए-ज़ीस्त तेरी ही चाहत हैं
जिस रास्ते पर गए थे तुम मुँह मोड़कर
उस रास्ते पर आज भी तेरी ही आहट हैं
कैसे कहूँ हाल-ए-क़ल्ब बावरी ‘वेद’ का
किसे सुनाऊँ कहानी तेरे बेनाम इश्क़ की
किया नहीं हैं जिसने वो ज़माना क्या जाने
तेरे इश्क़ में मरना मेरे लिए रब की इनायत है
पर जब तू ही नहीं मेरी निगाहों के सामने
तो तेरे इश्क़ को सरेआम मैं ना करूँगी
जब तक तू ना दे इज़ाज़त आकर मुझे
तेरे बिना मैं अब इस रास्ते से ना हटूँगी