बातें तन्हाइयों की
बातें तन्हाइयों की
जब होता हूं तन्हा बहुत सोचता हूं मैं,
पुरानी यादों संग दिल को खोलता हूं मैं,
लोग कहते हैं बड़ा कठिन है तन्हाई में हंसना,
तो रोती है दुनिया पर हंसता हूं मैं,
जब होता हूं तन्हा बहुत सोचता हूं मैं।
कहते हैं लोग तन्हाई में रहते हैं वो,
जिन्हें खुशियां नसीब ना हुईं,
खुशियां थीं पर उनकी आदत न हुई, ये कहता हूं मैं,
जब होता हूं तन्हा बहुत सोचता हूं मैं।
लोग कहते हैं कि मय में नशा होता है,
पर तनहाई ही तो मय को नशा देती है,
तो मय को जीते हैं लोग और तन्हाइयों को पीता हूं मैं,
जब होता हूं तन्हा बहुत सोचता हूं मैं।
वे कहते हैं तन्हाई को यादें, तन्हा यादों को गम चाहिए,
पर मुकम्मल गम खुशियों से होता है,
तो तन्हाई में गम ले रोते हैं वो, खुशियां बांट हंसता हूं मैं,
जब होता हूं तन्हा बहुत सोचता हूं मैं।
ये बातें हैं मेरी और मेरे जज़्बातों की,
बातें तो करते हैं हम, पर सुनना चाहते हैं लोग,
तो आज तन्हाइयों संग मेरी बातों को बोलता हूं मैं,
जब होता हूं तन्हा बहुत सोचता हूं मैं।