अस्तित्व की पहचान
अस्तित्व की पहचान
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चाहती हूं सिर्फ तुमसे
ना, वेदना निस्सार हो
त्याग और समर्पणों का
सदा ही आभार हो !_
बदली नहीं अब तक फिजाएं
ना, परिवर्तित हुई है भावना।
नये-नये प्रतिबिंब गढ लो
डटकर करो तुम सामना।
पेड़, पौधे, पर्वत ,कानन ,लताएं
खुद को बदल रही है !!
अस्तित्व है जीवित अगर
खुद का नया आकार हो।
कोई नहीं देगा तुम्हें ,
हक मांगती विस्तार को ?
वर्जनाएं तोड़कर
एक नये आकाश को,
देह से भी परे हो
स्वीकार् करो परिवर्तन को,
अपना नवल प्रसार हो !
निज की निजता को सहेज
पहचान नया प्रभार हो !
झुमकर कहती घटाएं
गीत सरिता का सुनो।
ऋतुएं बदली, प्रकृति बदले
सुप्त चेतना की पुकार
जब खुद को खुद से ही गुनो।
कोई कृष्ण नहीं आएगा
राह स्वयं की खुद चुनो।
यह सभी संभव तभी है
जब खुद को खुद से प्यार हो !