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Mukesh Goel

Others

4.5  

Mukesh Goel

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अश्लीलता !

अश्लीलता !

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अश्लीलता !

जब भी देखता हूँ तुम्हें,

आ जाती है विचारों में

तुम उसका 'अ' हटाकर

श्लीलता भर देती हो !

बदल जाते हैं विचार,

बदल जाती हैं भावनाएं,

क्या काम एक कीड़ा नहीं है?

जो काटता है सभी को,

हर पुरुष और नारी में,

काम का सम्बन्ध नहीं होता,

कुछ बहनें और माएँ भी होती है,

कुछ और भी होते हैं रिश्ते नाते,

पर इसके अलावा,

जो भी रिश्ता होता है,

क्या अश्लील ही होता है?

क्या काम एक बुरी चीज़ है?

रति और कामदेव !

पूरी दुनिया के सूत्रधार,

न होती रति, न होता काम,

क्या ये दुनिया होती?

क्या चल पाता ये सुन्दर,

विधाता का रचा संसार?

तुम और मैं,

उसी विधाता की,

दो सुन्दर रचनाएँ,

जिस के मिलन बिना,

सब कुछ अधूरा है,

मानव क्या यहाँ सभी लीन है,

पेड़ पौधे और जानवर भी,

सभी करते हैं वंश वृद्धि, 

तभी आगे बढ़ता है ये जग,

आगे बढ़ती है ये सृष्टि,

हर बात जो बताई जाए,

नहीं होती बुरी इतनी भी,

और न ही होती है बेकार,

बस होता है समझ का फ़ेर



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